Detailed Notes on Shodashi

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हरिप्रियानुजां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥

षट्कोणान्तःस्थितां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥६॥

चक्रेशी च पुराम्बिका विजयते यत्र त्रिकोणे मुदा

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वर्गानुक्रमयोगेन यस्याख्योमाष्टकं स्थितम् ।

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काञ्चीपुरीश्वरीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१०॥

ह्रीं‍श्रीर्मैं‍मन्त्ररूपा हरिहरविनुताऽगस्त्यपत्नीप्रदिष्टा

भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया get more info शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

प्रणमामि महादेवीं मातृकां परमेश्वरीम् ।

Her position transcends the mere granting of worldly pleasures and extends towards the purification of the soul, resulting in spiritual enlightenment.

इति द्वादशभी श्लोकैः स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् ।

, the creeper goddess, inferring that she's intertwined along with her legs wrapped around and embracing Shiva’s legs and physique, as he lies in repose. Being a digbanda, or protecting force, she policies the northeastern course from whence she presents grace and security.

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